
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक बार फिर अपने विशिष्ट शैली में बीजेपी सरकार की न्याय व्यवस्था पर कड़ा व्यंग्य किया है। इस बार उन्होंने अपने शब्दों की तलवार को कुछ इस अंदाज़ में घुमाया कि — “समझाइश अब धमकाइश बन गई है।”
अब ये मत समझिए कि वो कविता पढ़ रहे थे — ये तो राजनीतिक बुलेट था, जो सीधे लखनऊ की सत्ता की छाती पर दागी गई।
समझौते की राजनीति: जहां F.I.R. नहीं, ‘Fix It Right’ चलता है
अखिलेश जी का कहना है कि बीजेपी सरकार में रसूखदारों के लिए अदालतें नहीं, “समझौता टेबल” बिछाई जाती है।
आम आदमी? उसे तो बुलाया जाता है जैसे कोई शादी में गेटक्रैशर हो और फिर थाने में ‘समझाइश’ के नाम पर धमकाइश मिलती है।
“सत्ता के लोग विरोधियों को पकड़कर ‘सब इंतज़ाम हो जाएगा’ वाला स्क्रिप्ट पढ़वा देते हैं। बस कैमरा ऑन कर दो, बाकी एडिट में संभाल लेंगे।”
सत्ता की कुर्सी: सस्पेंशन से सेलेक्शन तक का रास्ता
यादव जी का इशारा साफ़ था — “कल जो सरकार के विरोधी थे, आज मंत्रियों की कतार में हैं।”
अब इसे क्या कहें?
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जनता की जीत?
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या सत्ता का सीट-मैनेजमेंट?
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या फिर कुर्सी का रिअलिटी शो — ‘कौन बनेगा सत्ता-धारी?’
अखिलेश जी ने इसे “सफेद मेज पर सफेद झूठ” कहा — और मानना पड़ेगा, ये punchline इतनी धारदार थी कि सत्ता की लकड़ी की कुर्सी भी कांप गई होगी।
“भाजपा जाए तो न्याय आए!” — राजनीति का नया जुमला
अपनी पोस्ट के अंत में अखिलेश यादव ने एक नारा दे डाला जो कम से कम चुनावी पोस्टरों के लिए तो रेडी है:
“भाजपा जाए तो न्याय आए!”
अब ये कहावत सी लगती है, लेकिन इसे सुनकर जनता सोच में पड़ गई है —
“क्या न्याय वाकई पार्टी-प्रूफ होता है या पार्टी-प्रूफ किया जाता है?”

जब न्याय व्यवस्था खुद ‘WhatsApp Forward’ जैसी हो जाए
अखिलेश यादव ने कहा कि UP में गरीब, पीड़ित और वंचित वर्गों को न तो सुनवाई मिल रही है, न सुरक्षा। ‘डर’ और ‘दबाव’ अब प्रशासनिक शब्दकोश के पहले पन्ने पर छप चुके हैं। अब इंसाफ अगर मिलेगा भी, तो शायद VIP कार्ड लेकर!
जनता का सवाल: क्या न्याय सिर्फ़ ट्विटर तक सीमित रह गया है?
सोशल मीडिया पर ट्रेंडिंग है — #JusticeForAll
लेकिन ज़मीनी हकीकत में चलता है — #JusticeForSome
अखिलेश ने बिल्कुल सही पूछा — “अगर दबाव और धमकी ही मिले, तो जनता का भरोसा कैसे बचे?”
लगता है लोकतंत्र अब
‘जन प्रतिनिधि’ से ज़्यादा ‘जन-प्रबंधन तंत्र’ बन चुका है।
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इस देश में अगर आप न्याय चाहते हैं तो पहले तय कर लीजिए कि आपके पास कितने followers हैं?
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आप कितने powerful हैं?
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आपकी कुर्सी कितनी मज़बूत है?
क्योंकि जैसा अखिलेश यादव ने इशारा किया — “यहाँ कुर्सी से ही इंसाफ तय होता है, और कुर्सी खुद तय होती है… बंद कमरे में।”
“भारत में न्याय blindfolded है… लेकिन earphones BJP ब्रांड के पहन रखे हैं!”
भारत: एक कुर्सी प्रधान राष्ट्र — जहां कुर्सी ही धर्म, कर्म और मर्म है!
